Thursday, April 19, 2012

है मुर्दा मस्त कलंदर तू ...



है मुर्दा मस्त कलंदर तू

क्यों बोझ का पौधा सींच रहा

है मन का अपने सिकंदर तू
 
क्यों मन में पाला खींच रहा

जब हवा चले तो बहने दो

जब हूक उठे तो कहने दे

खामोश है दिल चुप रहने दो

क्यों उलटे पाँव को चूम रहा


है मुर्दा मस्त कलंदर तू

क्यों बोझ का पौधा सींच रहा

है मन का अपने सिकंदर तू

क्यों मन में पाला खींच रहा

क्यों धीरे धीरे मरता है

क्यों हवा पर पाँव धरता है

क्यों आईने से डरता है

तू किस दुनिया में झूम रहा

है मुर्दा मस्त कलंदर तू

क्यों बोझ का पौधा सींच रहा

है मन का अपने सिकंदर तू

क्यों मन में पाला खींच रहा
                                 Neeraj Pal

2 comments:

रविकर said...

सुन्दर प्रस्तुति ।।

Unknown said...

dhnywaad ravi ji