एकमुश्त मौत दे दो
फिर खुशियों वाले ब्याज पर
एक नयी जिंदगी लो
एक सही जिंदगी लो
फिर जिंदा हो
फिर जिंदा हो
क्या खूब मुखौटा पहने है
क्या खुद पर पर्दा डाला है
है चमकती पट्टी आँखों पर
समझे खुद को निराला है
ये झूठ के परों को कतरों ज़रा
फिर छूना सच के आकाश को
अब छोडो, दुनिया के खौफ को
इस किस्तों वाली मौत को
एकमुश्त मौत दे दो
फिर खुशियों वाले ब्याज पर
एक नयी जिंदगी लो
एक सही जिंदगी लो
फिर जिंदा हो
फिर जिंदा हो
मन में रखे आईने को
सही सूरत दे दो, जीने को
देख दूजों की चकाचौंध
क्यों खुद पर शरमाते हो
इस उतरन को उतार फेकों
फिर अपनी असल चमक देखो
क्यों गीले कोयले से सुलगते हो
इस किस्तों वाली मौत को
एकमुश्त मौत दे दो
फिर खुशियों वाले ब्याज पर
एक नयी जिंदगी लो
एक सही जिंदगी लो
फिर जिंदा हो
फिर जिंदा हो
6 comments:
अच्छी कविता .. भा गयी ..
bahut acchi rachana
thankwaad pankaj bhai, thankwaad umang ji
Nice one.
thankwaad shikha mam
katarano me nahi ek muht maut
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