Friday, April 6, 2012

फिर जिंदा हो ....


इस  किस्तों वाली मौत को 
एकमुश्त मौत दे दो 
फिर खुशियों वाले ब्याज पर 
एक नयी जिंदगी लो
एक सही जिंदगी लो 
फिर जिंदा हो 
फिर जिंदा हो 

क्या खूब मुखौटा पहने है 
क्या खुद पर पर्दा डाला है 
है चमकती पट्टी आँखों पर
समझे खुद को निराला है 
ये झूठ के  परों को कतरों ज़रा 
फिर छूना सच के आकाश को 
अब छोडो, दुनिया के खौफ को 
इस  किस्तों वाली मौत को 
एकमुश्त मौत दे दो 
फिर खुशियों वाले ब्याज पर 
एक नयी जिंदगी लो
एक सही जिंदगी लो 
फिर जिंदा हो 
फिर जिंदा हो 

मन में रखे आईने को 
सही सूरत दे दो, जीने को 
देख दूजों की चकाचौंध 
क्यों खुद पर शरमाते हो 
इस उतरन को उतार फेकों 
फिर अपनी असल चमक देखो 
क्यों गीले कोयले से सुलगते हो 
इस  किस्तों वाली मौत को 
एकमुश्त मौत दे दो 
फिर खुशियों वाले ब्याज पर 
एक नयी जिंदगी लो
एक सही जिंदगी लो 
फिर जिंदा हो 
फिर जिंदा हो 

6 comments:

Prakash Pankaj | प्रकाश पंकज said...

अच्छी कविता .. भा गयी ..

umang said...

bahut acchi rachana

Unknown said...

thankwaad pankaj bhai, thankwaad umang ji

shikha varshney said...

Nice one.

Unknown said...

thankwaad shikha mam

Anonymous said...

katarano me nahi ek muht maut