Friday, December 14, 2012

मेरी चाह


मुझे सूरज नहीं बनना है

वो तो रोज डूबता है

मुझे चाँद भी नहीं होना

आधा माह गर्दिश में ही रहता है

मुझे तारा भी नहीं बनना

भीड़ में दिखते हैं हमेशा

मुझे हवा भी नहीं बनना

कोई शक्ल नहीं है उसकी

अगर हो सके तो मुझे

किसी बच्चे के चेहरे की मुस्कान बना दो

या फिर तपती धुप में

मजदूर पर पड़ती हुई एक छाँव बना दो


    Wednesday, November 28, 2012

    कुछ तो छोड़ो नेता जी..


    कुछ तो छोड़ो  नेता जी 
    मुंह तो मोड़ो नेता जी 

    दाल गटक गए, भात गटक गए 
    लोगों की औकाद गटक गए 
    कोयला, चारा, तेल गटक गए 
    स्टाम्प वाला खेल गटक गए 
    वादे कुर्सी वोट गटक गए 
    काले वाले नोट गटक गए 

    अब तो बक्शो नेता जी 
    देश पर तरसो नेता जी 


    कुछ तो छोड़ो  नेता जी 
    मुंह तो मोड़ो नेता जी 

    बिजली पानी सुधार गटक गए 
    मुआबजा-ऐ- बीमार गटक गए 
    बनी बनाई सड़क गटक गए 
    नदी नाले नहर गटक गए 
    नन्ही मुन्ही किताब गटक गए 
    सुनहरे कल के ख्वाब गटक गए 

    अब तो डकारो नेता जी 
    स्वर्ग सिधारो नेता जी 


    कुछ तो छोड़ो  नेता जी 
    मुंह तो मोड़ो नेता जी 

    गज़ब हाजमा लाये हो 
    क्या क्या गुरु पचाए हो 
    धर्म और ईमान पचा गए 
    राम और रहमान पचा गए 
    बापू वाली खादी पचा गए 
    देश की आजादी पचा गए 

    कब तक पचेगा नेता जी 
    पेट फटेगा नेता जी 


    कुछ तो छोड़ो  नेता जी 
    मुंह तो मोड़ो नेता जी 

    अब तो बक्शो नेता जी 
    देश पर तरसो नेता जी 


    कुछ तो छोड़ो  नेता जी 
    मुंह तो मोड़ो नेता जी 

    अब तो डकारो नेता जी 
    स्वर्ग सिधारो नेता जी 


    कुछ तो छोड़ो  नेता जी 
    मुंह तो मोड़ो नेता जी 

    Wednesday, October 17, 2012

    हरियाणा में 4 प्लेट चाउमीन के साथ 4 लड़के पकडे गए.




    हिन्दुस्तान में न जाने कितने तालिबान हैं.. हमारे यहाँ नौकरों से ज्यादा तो मालिक हैं.. यहाँ धर्मों के मालिक हैं. अधर्मों के मालिक हैं. गुंडों के मालिक हैं. हैं नेताओं के मालिक हैं. दबंगों के मालिक हैं. अपंगों के मालिक हैं. और इन सबका तो भगवान् ही मालिक है. वैसे भगवान् भी धरती पर इन लोगों के फुल कंट्रोल में रहते हैं. जैसा अरमान इनके दिल में आया वैसा फरमान इन्होने सुनाया. अब आप मानो या  मानो.. उसे सुन कर हंसो.. या फिर मान कर उसमें फंसो ... ये तो आपकी मर्जी है. यहाँ फेसबुक में और इंटरनेट में बैठकर उनके खिलाफ लिखना और उसपर रिएक्ट करना आसान है. पर उनका क्या होगा. जो वहां रह रहे हैं.. बेचारे कल से चाऊमीन नहीं खा पाएंगे. 

    खाप के माई-बापों ने छुरी कांटे से चाऊमीन खाते खाते हार मान ली होगी. बड़े बड़े नेता  जिनके सामने वोटों के लिए सर झुकाते हों वो चाऊमीन के लिए अपना सर झुका और नाक कटायें तो कैसे. छोटे छोटे लड़के उनके  सामने चम्मच से ही चाऊमीन को सफाचट कर जाते हैं. वो बेचारे देखते रह जाते हैं.. तब उनको बचपन की बात याद आती है. " न खेलेंगे ... न खेलने देंगे." और फिर बुलाई जाती है सम्मान के लिए एक बैठक. फैसला लिया जाता है की चाऊमीन का बहिस्कार होना चाहिए. बिना कारन बहिस्कार तो बनता नहीं.. जो मामला गरम  हो उससे जुड़े आरोप लगा देते  हैं उसपर. 
    मुझे तो लगा था की जमीन घोटाले या फिर अपंगों या फिर कोयले से जुड़े घोटाले का आरोप जड़ कर चाऊमीन का बहिस्कार करेंगे.. खैर उन्होंने चाऊमीन पर जो आरोप जड़ा है वो तो चाऊमीन को सौस दिखाने लायक नहीं छोड़ा. 

    मेरे हिसाब से खापों की सीमा सीमित है मगर जुर्रत असीमित.  खापों के बापों की भी हिम्मत नहीं की उनका कुछ बिगाड़ सकें. 

    Tuesday, July 17, 2012

    हिन्दुस्तान में तालिबान

    यहाँ धर्म शोर मचाता है 

    सम्प्रदाय चिल्लाता है 

    जातियां बोलती हैं 


    लोग सुनते हैं 


    यहाँ ये सब जिंदा हैं 


                        और शायद कुछ दम तोड़ते इंसान है 



                         मेरे हिन्दुस्तान में कई तालिबान हैं

    Thursday, May 24, 2012

    छूटी है जब आस ,तो फिर बात क्या करें ...


    है सब ड्रामेबाज़
    हैं सब गूंगे साज़ 
    हैं खूद में उस्ताद 
    है पैसे की बकवास 

    छूटी है जब आस ,तो फिर बात क्या करें 
    झूठे अश्कों का, अहसास क्या  करें 
    किस्से और कहानियों में बाकी है बचा 
    जग में मिटा है विश्वास क्या करें 
    उलटे सीधे रस्तों पे क्यों न जाऊं मै
    मुट्ठी में सूरज  रखूँ, चंदा पाऊँ मै 
    तलवारों पे चलने का सुकून जो मिले 
    खून भी बहाकर अपना हिस्सा पाऊँ मै 

    अब होगा आगाज़ 
    बजेंगे सारे साज़ 
    है दिल की ये आवाज़ 
    दुनिया जानेगी आज 

    Sunday, May 13, 2012

    माँ मम्मी अम्मा

    जिद्दी बने तो कारण तुम हो

    जीते तो भी कारण तुम हो

    गम से ख़ुशी का कारण तुम हो

    मेरे होने का कारण तुम हो

    अधिकार भी तुम ज़िम्मा भी तुम

    माँ मम्मी अम्मा भी तुम

    हैप्पी मदर्स डे

    Thursday, April 19, 2012

    है मुर्दा मस्त कलंदर तू ...



    है मुर्दा मस्त कलंदर तू

    क्यों बोझ का पौधा सींच रहा

    है मन का अपने सिकंदर तू
     
    क्यों मन में पाला खींच रहा

    जब हवा चले तो बहने दो

    जब हूक उठे तो कहने दे

    खामोश है दिल चुप रहने दो

    क्यों उलटे पाँव को चूम रहा


    है मुर्दा मस्त कलंदर तू

    क्यों बोझ का पौधा सींच रहा

    है मन का अपने सिकंदर तू

    क्यों मन में पाला खींच रहा

    क्यों धीरे धीरे मरता है

    क्यों हवा पर पाँव धरता है

    क्यों आईने से डरता है

    तू किस दुनिया में झूम रहा

    है मुर्दा मस्त कलंदर तू

    क्यों बोझ का पौधा सींच रहा

    है मन का अपने सिकंदर तू

    क्यों मन में पाला खींच रहा
                                     Neeraj Pal

    Friday, April 6, 2012

    फिर जिंदा हो ....


    इस  किस्तों वाली मौत को 
    एकमुश्त मौत दे दो 
    फिर खुशियों वाले ब्याज पर 
    एक नयी जिंदगी लो
    एक सही जिंदगी लो 
    फिर जिंदा हो 
    फिर जिंदा हो 

    क्या खूब मुखौटा पहने है 
    क्या खुद पर पर्दा डाला है 
    है चमकती पट्टी आँखों पर
    समझे खुद को निराला है 
    ये झूठ के  परों को कतरों ज़रा 
    फिर छूना सच के आकाश को 
    अब छोडो, दुनिया के खौफ को 
    इस  किस्तों वाली मौत को 
    एकमुश्त मौत दे दो 
    फिर खुशियों वाले ब्याज पर 
    एक नयी जिंदगी लो
    एक सही जिंदगी लो 
    फिर जिंदा हो 
    फिर जिंदा हो 

    मन में रखे आईने को 
    सही सूरत दे दो, जीने को 
    देख दूजों की चकाचौंध 
    क्यों खुद पर शरमाते हो 
    इस उतरन को उतार फेकों 
    फिर अपनी असल चमक देखो 
    क्यों गीले कोयले से सुलगते हो 
    इस  किस्तों वाली मौत को 
    एकमुश्त मौत दे दो 
    फिर खुशियों वाले ब्याज पर 
    एक नयी जिंदगी लो
    एक सही जिंदगी लो 
    फिर जिंदा हो 
    फिर जिंदा हो 

    Monday, March 12, 2012

    परछाई के खातिर कब तक.... सूरज को पीठ दिखाऊंगा


    मजबूरी की मंजूरी है या

    मंजूरी की मजबूरी है

    ख्वाबों की हकीक़त से

    ये जाने कैसी दूरी है

    टूटा- चिटका सच बेहतर है

    उजले उजले धोखे से

    कुछ मौके पर तुम मुकरे हो

    कुछ मौकों पर गलत थे हम

    धुंआ धुंआ फैले थे तुम

    हवा हवा संवरे थे हम

    अब खुद को कितना मौका दूंगा

    कितना मै समझाऊंगा

    परछाई के खातिर कब तक

    सूरज को पीठ दिखाऊंगा

    ये जिंदगी की दौड़ है

    यहाँ हारना भी जरूरी था

    यहाँ जीतना भी जरूरी है

    मजबूरी की मंजूरी है या

    मंजूरी की मजबूरी है

    ख्वाबों की हकीक़त से

    ये जाने कैसी दूरी है