Friday, December 14, 2012

मेरी चाह


मुझे सूरज नहीं बनना है

वो तो रोज डूबता है

मुझे चाँद भी नहीं होना

आधा माह गर्दिश में ही रहता है

मुझे तारा भी नहीं बनना

भीड़ में दिखते हैं हमेशा

मुझे हवा भी नहीं बनना

कोई शक्ल नहीं है उसकी

अगर हो सके तो मुझे

किसी बच्चे के चेहरे की मुस्कान बना दो

या फिर तपती धुप में

मजदूर पर पड़ती हुई एक छाँव बना दो