Thursday, April 19, 2012

है मुर्दा मस्त कलंदर तू ...



है मुर्दा मस्त कलंदर तू

क्यों बोझ का पौधा सींच रहा

है मन का अपने सिकंदर तू
 
क्यों मन में पाला खींच रहा

जब हवा चले तो बहने दो

जब हूक उठे तो कहने दे

खामोश है दिल चुप रहने दो

क्यों उलटे पाँव को चूम रहा


है मुर्दा मस्त कलंदर तू

क्यों बोझ का पौधा सींच रहा

है मन का अपने सिकंदर तू

क्यों मन में पाला खींच रहा

क्यों धीरे धीरे मरता है

क्यों हवा पर पाँव धरता है

क्यों आईने से डरता है

तू किस दुनिया में झूम रहा

है मुर्दा मस्त कलंदर तू

क्यों बोझ का पौधा सींच रहा

है मन का अपने सिकंदर तू

क्यों मन में पाला खींच रहा
                                 Neeraj Pal

Friday, April 6, 2012

फिर जिंदा हो ....


इस  किस्तों वाली मौत को 
एकमुश्त मौत दे दो 
फिर खुशियों वाले ब्याज पर 
एक नयी जिंदगी लो
एक सही जिंदगी लो 
फिर जिंदा हो 
फिर जिंदा हो 

क्या खूब मुखौटा पहने है 
क्या खुद पर पर्दा डाला है 
है चमकती पट्टी आँखों पर
समझे खुद को निराला है 
ये झूठ के  परों को कतरों ज़रा 
फिर छूना सच के आकाश को 
अब छोडो, दुनिया के खौफ को 
इस  किस्तों वाली मौत को 
एकमुश्त मौत दे दो 
फिर खुशियों वाले ब्याज पर 
एक नयी जिंदगी लो
एक सही जिंदगी लो 
फिर जिंदा हो 
फिर जिंदा हो 

मन में रखे आईने को 
सही सूरत दे दो, जीने को 
देख दूजों की चकाचौंध 
क्यों खुद पर शरमाते हो 
इस उतरन को उतार फेकों 
फिर अपनी असल चमक देखो 
क्यों गीले कोयले से सुलगते हो 
इस  किस्तों वाली मौत को 
एकमुश्त मौत दे दो 
फिर खुशियों वाले ब्याज पर 
एक नयी जिंदगी लो
एक सही जिंदगी लो 
फिर जिंदा हो 
फिर जिंदा हो