है सब ड्रामेबाज़
हैं सब गूंगे साज़
हैं खूद में उस्ताद
है पैसे की बकवास
छूटी है जब आस ,तो फिर बात क्या करें
झूठे अश्कों का, अहसास क्या करें
किस्से और कहानियों में बाकी है बचा
जग में मिटा है विश्वास क्या करें
उलटे सीधे रस्तों पे क्यों न जाऊं मै
मुट्ठी में सूरज रखूँ, चंदा पाऊँ मै
तलवारों पे चलने का सुकून जो मिले
खून भी बहाकर अपना हिस्सा पाऊँ मै
अब होगा आगाज़
बजेंगे सारे साज़
है दिल की ये आवाज़
दुनिया जानेगी आज
5 comments:
Good one.
thanx mam
♥
नीरज पाल जी
नमस्कार !
पूरे ब्लॉग पर मस्त लेखन है बंधु !
कई सारी रचनाएं अभी पढ़ी हैं …
मज़ा आया …
:)
मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
aapki sabhi kavitayen bahut achhi hain Neeraj ji........aise hi likhte rahiye hamesha....GOD BLESS YOU
Rajedra ji dhnywaad
barkha ji shukriya
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