मुझे सूरज नहीं बनना है
वो तो रोज डूबता है
मुझे चाँद भी नहीं होना
आधा माह गर्दिश में ही रहता है
मुझे तारा भी नहीं बनना
भीड़ में दिखते हैं हमेशा
मुझे हवा भी नहीं बनना
कोई शक्ल नहीं है उसकी
अगर हो सके तो मुझे
किसी बच्चे के चेहरे की मुस्कान बना दो
या फिर तपती धुप में
मजदूर पर पड़ती हुई एक छाँव बना दो