मुखौटों ने अपनी शक्लें पहचानी हैं
इसीलिए तो आईने से आनाकानी है.
परछाईं भी घटती बढती है पल पल
खुद के दम पर नैया पार लगानी है.
अंधियारे की रात भयानक आई है
जुगुनुओं की बरात हमें अब लानी है.
संविधान के खातिर खाकी खादी ने
जो खायी थी कसमें याद दिलानी हैं.
टूटो-छूटो फिर से संवरो और डट जाओ
संघर्ष का दूजा नाम ही तो जवानी है.
रचना काल: 9/05/2013