है मुर्दा मस्त कलंदर तू ...
है मुर्दा मस्त कलंदर तू
क्यों बोझ का पौधा सींच रहा
है मन का अपने सिकंदर तू
क्यों मन में पाला खींच रहा
जब हवा चले तो बहने दो
जब हूक उठे तो कहने दे
खामोश है दिल चुप रहने दो
क्यों उलटे पाँव को चूम रहा
है मुर्दा मस्त कलंदर तू
क्यों बोझ का पौधा सींच रहा
है मन का अपने सिकंदर तू
क्यों मन में पाला खींच रहा
क्यों धीरे धीरे मरता है
क्यों हवा पर पाँव धरता है
क्यों आईने से डरता है
तू किस दुनिया में झूम रहा
है मुर्दा मस्त कलंदर तू
क्यों बोझ का पौधा सींच रहा
है मन का अपने सिकंदर तू
क्यों मन में पाला खींच रहा
2 comments:
सुन्दर प्रस्तुति ।।
dhnywaad ravi ji
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