Wednesday, May 28, 2014

तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी


तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी 
माँ रोई और बहना रोई, रोई खुदाई थी 
तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी  

माँ बोली मेरा एक लाल था जिसने प्राण गवाएं 
इश्वर ने क्यों मुझको ना सौ सौ लाल जनाए 
देश सुरक्षा के खातिर सबको सरहद भिजवाती 
सौ शहीदों वालों माँ मै बड़े गर्व से कहाती 
फफक- फफक कर रोई माँ, रो रो बौराई थी 

तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी 
माँ रोई और बहना रोई, रोई खुदाई थी 
तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी  


बहना बोली भाई ने मेरे मेरा मान बढाया 
रक्षा बंधन के सूत्र वाक्य को जीवन में अपनाया 
मेरा भाई वीर था उसने वीरगति को पाया 
देश सुरक्षा के खातिर- 
हाँ देश सुरक्षा के खातिर अपनी जान गंवाई 
ये कहते ही उसने भी सुध-बुध गंवाई थी 


तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी 
माँ रोई और बहना रोई, रोई खुदाई थी 
तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी  

शहीद हो गया लाल ये मेरे बुढ़ापे का सहारा 
कर रहा गर्व मेरे लाल पे पूरा देश हमारा 
सेना में भर्ती होने का सपना मैंने दिखलाया 
देश सुरक्षा सर्वोपरि है पाठ ये मैंने पढ़ाया 
हम सबकी रक्षा के खातिर सबकुछ उसने लुटाया 
इतना कहते ही उसकी फिर आँखें भर आयीं थीं 

तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी 
माँ रोई और बहना रोई, रोई खुदाई थी 
तिरंगे में उसकी मिटटी घर जो आयी थी

Wednesday, August 21, 2013

मै खुद में खुदा को ढूंढता हूँ

खुद से जीतने की जिद है, मुझे खुद को ही हराना है 
मै भीड़ नहीं हूँ दुनिया की, मेरे अन्दर एक ज़माना है

मै खुद में खुदा को ढूंढता हूँ 
डूबता हूँ, डूबता हूँ, डूबता हूँ 
अजीब हाल है इस दुनियादारी का 
ये सारे हाल तेरे हाल पर ही छोड़ता हूँ 

डूबता हूँ, डूबता हूँ, डूबता हूँ 
मै खुद में खुदा को ढूंढता हूँ 
डूबता हूँ, डूबता हूँ, डूबता हूँ 

टूटने दो टूटने के बाद ही तो कुछ बनेगा 
छूटने दो छूटने के बाद ही तो वो मिलेगा 
एक परिंदा है अभी जिंदा मुझमें कहीं थोडा बहुत 
उड़ने दो उड़ने के बाद ही तो वो कहेगा 

मै मलंग, बनके पतंग 
अपने फलक को चूमता हूँ 

डूबता हूँ, डूबता हूँ, डूबता हूँ 
मै खुद में खुदा को ढूंढता हूँ 
डूबता हूँ, डूबता हूँ, डूबता हूँ 
मै खुद में खुदा को ढूंढता हूँ 

अजीब हाल है इस दुनियादारी का 
ये सारे हाल तेरे हाल पर ही छोड़ता हूँ 


चाहता हूँ  मै भी उड़ना और तैरना 
चाहता हूँ  मै भी नाचूँ बनके झरना 
तोड़ दूं जंजीर जिनसे मै बंधा हूँ 
चाहता हूँ लिख दूं हवा पे नाम अपना 

चाहता हूँ इस कदर,
इसी चाह में मै झूमता हूँ 

डूबता हूँ, डूबता हूँ, डूबता हूँ 
मै खुद में खुदा को ढूंढता हूँ 
डूबता हूँ, डूबता हूँ, डूबता हूँ 
मै खुद में खुदा को ढूंढता हूँ 

अजीब हाल है इस दुनियादारी का 
ये सारे हाल तेरे हाल पर ही छोड़ता हूँ 

Wednesday, May 8, 2013

संघर्ष का दूजा नाम ही तो जवानी है.












मुखौटों ने अपनी शक्लें पहचानी हैं
इसीलिए तो आईने से आनाकानी है. 

परछाईं भी घटती बढती है पल पल 

खुद के दम पर नैया पार लगानी है. 

अंधियारे की रात भयानक आई है 

जुगुनुओं की बरात हमें अब लानी है.

संविधान के खातिर खाकी खादी ने 

जो खायी थी कसमें याद दिलानी हैं.

टूटो-छूटो फिर से संवरो और डट जाओ 

संघर्ष का दूजा नाम ही तो जवानी है. 


रचना काल: 9/05/2013


Monday, April 15, 2013

गोपू का फेस्बुकिया इश्क


हमारे मोहल्ले के टशनी मित्र गोपेश्वर प्रसाद त्रिपाठी उर्फ़ गोपू। ये उनका उर्फ़ वाला नाम हम दोस्तों की देन है। वैसे गोपू भाई शुरवात में  मतलब जब हम लोगों की संगती में आये थे तब वो टशनी वशनी तो बिलकुल नहीं थे. एक सीधे सच्चे बच्चे थे। फिर बातों के साथ गलियों का ऐसा मिश्रण हुआ की मानो शरबत में नींबू नीचोड़ कर दे दिया हो किसी ने। वैसे बीप बीप वाली जुबान के मालिक गोपू आज कल दूसरी ही भाषा बोल रहे हैं। जैसे हँसते हैं तो कहते हैं लोल, कुछ बुरा लग जाए तो बोलते हैं  व्हाट द ऍफ़, और ज़्यादातर तो अपने टशनी फ़ोन के साथ ही लगे रहते हैं। हम दोस्तों से ज्यादा वो उन दोस्तों से बातें करते हैं। खैर अपन को कोई शिकायत नहीं, अपन तो फ़क्कड़ी आदमी हैं, दोस्त को अपन ने वहां भी पकड़ लिया। पर साला अब अबे की जगह हाय बोलना पड़ता है। खैर गोपू से फेस टू फेस न सही फेसबुक पर तो मुलाक़ात हो ही जाती है। 

हफ्ते में कभी कभार नहाने वाले गोपू फेसबुक में अपनी चमचमाती हुई प्रोफाइल फोटो और गूगल से उठाई गयी प्यार वाली कविताओं के लिए जाने जाते हैं। यह कार्य ये नियमित रूप से कर रहे है। वैसे एक काम और है जो ये बिना किसी देरी के करते हैं वो है लड़की की प्रोफाइल दिखी नही की इनका फ्रेंड रिक्वेस्ट का पहुंचना। वैसे उनकी कोशिस थोड़ी बहुत कामयाब भी हुई कुछ फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट भी हुई और बहुत सारी रिजेक्ट। खैर आशावादी गोपू ने रिजेक्शन को भूल एक्सेप्टेंस की ख़ुशी मनाई और अपने वाल पर चिपका दी किसी घटिया कवि की घटिया सी लाइन " बधाई हो दोस्तों हम हो गए आज हज़ार, बस इसी तरह से मिलता रहे आपका हर दिन प्यार" ।  प्यार से याद आया की अपनी 'गोप्स द डूड' के नाम से बनायीं गयी प्रोफाइल जुडी न जाने कितनी फेक आई डी वाली लड़कियों से और  न जाने कितनी बार प्यार कर बैठे थे हमारे मोहल्ले के टशनी मित्र गोपेश्वर प्रसाद त्रिपाठी उर्फ़ गोपू। हज़ारों बार दिल टूटा और लाखों बार खुद को संभाला, आखिर कार सोशल मीडिया पर होने का फायदा उन्हें मिलता हुआ दिखाई पड़ा। वो अब हर घंटे की अपडेट लिख देते हैं दिल का सिम्बल बना कर। इश्क वाला लव हुआ था या लव वाला इश्क पता ही नहीं चला।  ये अपना गोपू ही था जो की ऐसी ऐसी फोटो पर वहां नज़र आ रहा था या फिर कोई और। अभी तक फेस टू फेस न मिला गोपू फेसबुक पर इश्क के इज़हार को अपना संसार मान रहा था। 
इसका एक तो फर्क पड़ा, अब वो पुरा
ना वाला गोपू वापस मिल गया जो की हमसे पहली बार मिलने आया था। मतलब बिना गाली वाला सीधा बच्चा, इश्क जो न कराये वो कम। 

वैसे उस प्यार के चक्कर में उसने शहर के न जाने कितने और कहाँ कहाँ चक्कर लगाये, ऐसा लग रहा था कोई टीचर किसी बिगडैल बच्चे को जानबूझ कर ऐसा टास्क दे रहा है जिससे उसका ज्ञान भी बड़े और सजा भी मिले। पर यहाँ तो न कोई टीचर था और न ही कोई स्टूडेंट, यहाँ था तो ट्शनी की चाशनी से बहार आ चूका गोपू और उसका अनदेखा, अंजना (एकौर्डिंग टू हिम फेसबुक पर मिला और जाना पहचाना) प्यार। खैर अपनी ही दुनिया में मस्त गोपू मोबाइल और लैपटॉप से चिपका रहने वाला वो लड़का अब एक मीटिंग ही चाहता था, पर ये उसकी चाहत थी, हर चाहत हकीकत हो ये जरूरी तो नहीं। वैसे इतना सब होते हुए भी उसने किसी को कुछ नहीं बताया, पर एक दिन जब उससे नहीं रहा गया तो मुझसे बोलने लगा " यार नीरज ये बताओ की किसी को बिना देखे बिना मिले, या फिर केवल फेसबुक ( ये शब्द उसके मुह से अचानक निकल गया) पर मिले प्यार हो सकता है क्या?" मैंने कहाँ यार ये तो अपनी अपनी सोंच है वैसे के बार मिलकर ही फैसला लेना चाहिए दोस्त नहीं तो दिल टूटता है और उसकी आवाज़ तक नहीं आती है। 

शायद उसको ये बात कुछ जमी, और उसने उस पर मिलने के लिए खूब जोर डाला, और मीटिंग फिक्स हुई वो बड़ा बनठन के मिलने पहुंचा हाथों में गुलाब, आँखों में महंगा सा चश्मा अच्छी सी शर्ट पेंट और बेहद कीमती पर्फियुम से नहाकर। थोड़ी देर इंतज़ार के बाद उसको बताये हुए रंग (पिंक) की शर्ट और जीन्स में एक लड़की नुमा लड़का पहुंचा, उसे यकीन नहीं हुआ,  उस वक्त उसे लगा की  जो उसकी सोंच है वही सही है  ये जो नज़र आ रहा है ये भ्रम है इसी लिए उसने मुस्कुराकर वेलकम करते हुए जब अपन हाथ बढाया तो उसका अहसास भी उसकी सोंच की तरह ही कोमल था। मगर कहते हैं की जब सच का झोंका चलता है तो झूठ के सारे महल ढ़ह जाते हैं। वही हुआ जैसे ही उसने मुह खोला  गोपेश्वर प्रसाद त्रिपाठी उर्फ़ गोपू का सारा भ्रम फुर्र हो गया। फिर क्या था वो वहां से ऐसे भाग जैसे वहां आया ही न हो। 

वैसे सुना है की फेसबुक पर प्यार तो नहीं मिला पर फेसबुक से उसका प्यार अभी भी बरकरार है। लोग तो कहते हैं गोपू की खोज जारी है और उसकी लड़कियों को फ्रेंड रिक्वेस्ट सेंडिंग भी जारी है। 

Friday, February 1, 2013

जंगल में गूंजी सिसकी

भरी दुपहरी 

खुली मशहरी 

मच्छर करते गुन गुन गुन

 
चिड़ियाँ दाना चुगना भूलीं 


करतीं रह गयीं, चूं चूं चूं 


लार बहाते, कुत्ते भौंकें

 
जंगल देखे जंगल चौंके

 
हड्डी नोंचें चिड़िया की 


जंगल में गूंजी सिसकी 


उसकी सिसकी गूंगी थी

 
या जंगल की दुनिया बहरी थी

 
देख चिरैया की हालत 


खौफ जंगल में फ़ैल गया 


और कुत्तों की जुबानों ने 


एक नए गोश्त का स्वाद चखा 


और इधर जंगल में सारे शेर शर्मिंदा हैं 


जंगल में आज भी वहशी कुत्ते जिंदा हैं

Friday, December 14, 2012

मेरी चाह


मुझे सूरज नहीं बनना है

वो तो रोज डूबता है

मुझे चाँद भी नहीं होना

आधा माह गर्दिश में ही रहता है

मुझे तारा भी नहीं बनना

भीड़ में दिखते हैं हमेशा

मुझे हवा भी नहीं बनना

कोई शक्ल नहीं है उसकी

अगर हो सके तो मुझे

किसी बच्चे के चेहरे की मुस्कान बना दो

या फिर तपती धुप में

मजदूर पर पड़ती हुई एक छाँव बना दो


    Wednesday, November 28, 2012

    कुछ तो छोड़ो नेता जी..


    कुछ तो छोड़ो  नेता जी 
    मुंह तो मोड़ो नेता जी 

    दाल गटक गए, भात गटक गए 
    लोगों की औकाद गटक गए 
    कोयला, चारा, तेल गटक गए 
    स्टाम्प वाला खेल गटक गए 
    वादे कुर्सी वोट गटक गए 
    काले वाले नोट गटक गए 

    अब तो बक्शो नेता जी 
    देश पर तरसो नेता जी 


    कुछ तो छोड़ो  नेता जी 
    मुंह तो मोड़ो नेता जी 

    बिजली पानी सुधार गटक गए 
    मुआबजा-ऐ- बीमार गटक गए 
    बनी बनाई सड़क गटक गए 
    नदी नाले नहर गटक गए 
    नन्ही मुन्ही किताब गटक गए 
    सुनहरे कल के ख्वाब गटक गए 

    अब तो डकारो नेता जी 
    स्वर्ग सिधारो नेता जी 


    कुछ तो छोड़ो  नेता जी 
    मुंह तो मोड़ो नेता जी 

    गज़ब हाजमा लाये हो 
    क्या क्या गुरु पचाए हो 
    धर्म और ईमान पचा गए 
    राम और रहमान पचा गए 
    बापू वाली खादी पचा गए 
    देश की आजादी पचा गए 

    कब तक पचेगा नेता जी 
    पेट फटेगा नेता जी 


    कुछ तो छोड़ो  नेता जी 
    मुंह तो मोड़ो नेता जी 

    अब तो बक्शो नेता जी 
    देश पर तरसो नेता जी 


    कुछ तो छोड़ो  नेता जी 
    मुंह तो मोड़ो नेता जी 

    अब तो डकारो नेता जी 
    स्वर्ग सिधारो नेता जी 


    कुछ तो छोड़ो  नेता जी 
    मुंह तो मोड़ो नेता जी 

    Wednesday, October 17, 2012

    हरियाणा में 4 प्लेट चाउमीन के साथ 4 लड़के पकडे गए.




    हिन्दुस्तान में न जाने कितने तालिबान हैं.. हमारे यहाँ नौकरों से ज्यादा तो मालिक हैं.. यहाँ धर्मों के मालिक हैं. अधर्मों के मालिक हैं. गुंडों के मालिक हैं. हैं नेताओं के मालिक हैं. दबंगों के मालिक हैं. अपंगों के मालिक हैं. और इन सबका तो भगवान् ही मालिक है. वैसे भगवान् भी धरती पर इन लोगों के फुल कंट्रोल में रहते हैं. जैसा अरमान इनके दिल में आया वैसा फरमान इन्होने सुनाया. अब आप मानो या  मानो.. उसे सुन कर हंसो.. या फिर मान कर उसमें फंसो ... ये तो आपकी मर्जी है. यहाँ फेसबुक में और इंटरनेट में बैठकर उनके खिलाफ लिखना और उसपर रिएक्ट करना आसान है. पर उनका क्या होगा. जो वहां रह रहे हैं.. बेचारे कल से चाऊमीन नहीं खा पाएंगे. 

    खाप के माई-बापों ने छुरी कांटे से चाऊमीन खाते खाते हार मान ली होगी. बड़े बड़े नेता  जिनके सामने वोटों के लिए सर झुकाते हों वो चाऊमीन के लिए अपना सर झुका और नाक कटायें तो कैसे. छोटे छोटे लड़के उनके  सामने चम्मच से ही चाऊमीन को सफाचट कर जाते हैं. वो बेचारे देखते रह जाते हैं.. तब उनको बचपन की बात याद आती है. " न खेलेंगे ... न खेलने देंगे." और फिर बुलाई जाती है सम्मान के लिए एक बैठक. फैसला लिया जाता है की चाऊमीन का बहिस्कार होना चाहिए. बिना कारन बहिस्कार तो बनता नहीं.. जो मामला गरम  हो उससे जुड़े आरोप लगा देते  हैं उसपर. 
    मुझे तो लगा था की जमीन घोटाले या फिर अपंगों या फिर कोयले से जुड़े घोटाले का आरोप जड़ कर चाऊमीन का बहिस्कार करेंगे.. खैर उन्होंने चाऊमीन पर जो आरोप जड़ा है वो तो चाऊमीन को सौस दिखाने लायक नहीं छोड़ा. 

    मेरे हिसाब से खापों की सीमा सीमित है मगर जुर्रत असीमित.  खापों के बापों की भी हिम्मत नहीं की उनका कुछ बिगाड़ सकें. 

    Tuesday, July 17, 2012

    हिन्दुस्तान में तालिबान

    यहाँ धर्म शोर मचाता है 

    सम्प्रदाय चिल्लाता है 

    जातियां बोलती हैं 


    लोग सुनते हैं 


    यहाँ ये सब जिंदा हैं 


                        और शायद कुछ दम तोड़ते इंसान है 



                         मेरे हिन्दुस्तान में कई तालिबान हैं

    Thursday, May 24, 2012

    छूटी है जब आस ,तो फिर बात क्या करें ...


    है सब ड्रामेबाज़
    हैं सब गूंगे साज़ 
    हैं खूद में उस्ताद 
    है पैसे की बकवास 

    छूटी है जब आस ,तो फिर बात क्या करें 
    झूठे अश्कों का, अहसास क्या  करें 
    किस्से और कहानियों में बाकी है बचा 
    जग में मिटा है विश्वास क्या करें 
    उलटे सीधे रस्तों पे क्यों न जाऊं मै
    मुट्ठी में सूरज  रखूँ, चंदा पाऊँ मै 
    तलवारों पे चलने का सुकून जो मिले 
    खून भी बहाकर अपना हिस्सा पाऊँ मै 

    अब होगा आगाज़ 
    बजेंगे सारे साज़ 
    है दिल की ये आवाज़ 
    दुनिया जानेगी आज 

    Sunday, May 13, 2012

    माँ मम्मी अम्मा

    जिद्दी बने तो कारण तुम हो

    जीते तो भी कारण तुम हो

    गम से ख़ुशी का कारण तुम हो

    मेरे होने का कारण तुम हो

    अधिकार भी तुम ज़िम्मा भी तुम

    माँ मम्मी अम्मा भी तुम

    हैप्पी मदर्स डे

    Thursday, April 19, 2012

    है मुर्दा मस्त कलंदर तू ...



    है मुर्दा मस्त कलंदर तू

    क्यों बोझ का पौधा सींच रहा

    है मन का अपने सिकंदर तू
     
    क्यों मन में पाला खींच रहा

    जब हवा चले तो बहने दो

    जब हूक उठे तो कहने दे

    खामोश है दिल चुप रहने दो

    क्यों उलटे पाँव को चूम रहा


    है मुर्दा मस्त कलंदर तू

    क्यों बोझ का पौधा सींच रहा

    है मन का अपने सिकंदर तू

    क्यों मन में पाला खींच रहा

    क्यों धीरे धीरे मरता है

    क्यों हवा पर पाँव धरता है

    क्यों आईने से डरता है

    तू किस दुनिया में झूम रहा

    है मुर्दा मस्त कलंदर तू

    क्यों बोझ का पौधा सींच रहा

    है मन का अपने सिकंदर तू

    क्यों मन में पाला खींच रहा
                                     Neeraj Pal